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गूगल से साभार |
जब हमारे समाज में संयुक्त परिवार था
दादा-दादी, चाचा-चाची
ताऊ-ताई, बहन-भाई
किसी एक की खुशी में पूरे परिवार का चेहरा खिलता था
और हर एक बच्चे को कई मांओं का प्यार मिलता था
जब घर का कोई सदस्य बीमार हो जाता था
तो पूरा परिवार उसकी सेवा में लग जाता था
चारों तरफ खुशियां ही खुशियां नजर आती थी
और कोई रुठ जाये तो दादी कितने प्यार से मनाती थी
बच्चों का लडना, झगडना, फिर एक थाली में बैठकर खाना
और बहुओं का बारी-बारी से मायके जाना
पूरा का पूरा परिवार एक ही छत के नीचे पलता था
हँसते खेलते कब बडे हो गये पता ही नहीं चलता था
परिवार के सभी सदस्य एक दूसरे के लिये जीते थे
एक दूसरे के लिये मरते थे
और जितना प्यार पत्नी को
उतना ही प्यार माँ-बाप को करते थे
लेकिन आज के एकल परिवार में
पिता रात को काम से आते हैं
और उनके आने से पहले
बच्चे खा-पी कर सो जाते हैं
दोपहर में बच्चे स्कूल से आकर शाम तक
मम्मी के ऑफिस से आने का करते हैं इंतजार
बच्चे नहीं जानते क्या होता है दादा-दादी का प्यार
बच्चे नहीं जानते चाचा-चाची का दुलार
काश बच्चों को फिर मिल जाये वो मजबूत आधार
काश बच्चों को फिर मिल जाये संयुक्त परिवार
संयुक्त परिवार, संयुक्त परिवार
यह रचना मुझे कहीं से एक कागज पर लिखी मिली है, नीचे नाम रसिक गुप्ता (9312000354) है। मैनें फोन पर उनसे अनुमति लेने की कोशिश की थी, लेकिन सम्पर्क नहीं हो सका। उनसे बिना अनुमति लिये यहां आप तक पहुँचा रहा हूँ। आपको पसन्द आयी है तो आप उनको फोन या sms द्वारा साधुवाद दे सकते हैं।
रचनाकार या किसी को भी आपत्ति होने पर क्षमायाचना सहित हटा दी जायेगी।
अन्तर सोहिल का प्रणाम